क्या सरकार उठा पायेगी इतना भार ?

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गौरतलब  है! कि बच्चों  के लिए
 नि:शुल्क और  अनिवार्य शिक्षा का
अधिकार  अधिनियम,  2009 की
चुनौतियों  से   निपटने  के  लिए
सूबे में तात्कालिक तौर पर 7000
नये स्कूलों और 90,000 अतिरिक्त
क्लासरूम की जरूरत होगी। मौजूदा
एक लाख स्कूलों को चहारदीवारी से
घेरने  की जरूरत होगी। सर्व शिक्षा
अभियान  परियोजना के मानक के
अनुसार   एक प्राथमिक  स्कूल को
बनाने पर  3.९९५ लाख रुपये और
उच्चप्राथमिक स्कूल के निर्माण पर
5.28  लाख  रुपये  खर्च आता है।


अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक
बेसिक  शिक्षा परिषद द्वारा संचालित
प्राथमिक व उच्चप्राथमिक स्कूलों में
बच्चों को  पढ़ाने के लिए साढ़े चार
लाख और शिक्षकों की दरकार होगी।
इतनी बड़ीसंख्या में भर्ती किये जाने
वाले शिक्षकों को ट्रेनिंग देने के लिए
प्रशिक्षण के   मुकम्मल  ढांचे  की
आवश्यकता होगी।

च्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने वाले अधिनियम ने भले ही सूबे के करोड़ों निरक्षर, विपन्न बच्चों और उनके अभिभावकों की आंखों में उम्मीदों के सपने सजाये हों लेकिन इस क्रांतिकारी कानून ने उत्तर प्रदेश सरकार की पेशानी पर बल भी डाल दिये हैं।

अधिनियम पर अमल का संवैधानिक दायित्व तो राज्य सरकार को भविष्य में निभाना पड़ेगा लेकिन अपने कंधों पर पड़ने वाली इस जिम्मेदारी का 'असहनीय' बोझ वह अभी से महसूस करने लगी है। राज्य सरकार की चिंता बेवजह नहीं है क्योंकि अधिनियम के क्रियान्वयन पर सर्वशिक्षा अभियान के मौजूदा बजट से साढ़े चार गुना से अधिक धनराशि हर साल खर्च होने का अनुमान है।

सरकार की यह चिंता मुख्यमंत्री मायावती की ओर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हाल ही में भेजे गए उस पत्र में साफ झलकती है, जिसमें उन्होंने कहा है कि केंद्र के आर्थिक सहयोग के बिना उप्र इस संवैधानिक दायित्व को निभाने में असमर्थता महसूस कर रहा है।

अभी प्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान का कुल बजट तकरीबन 3800 करोड़ रुपये ही है। इसमें केंद्र सरकार की 60 प्रतिशत और राज्य/बेसिक शिक्षा विभाग की 40 फीसदी हिस्सेदारी है। राज्य सरकार का अनुमान है कि प्रदेश में सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने की तात्कालिक जरूरतों से निपटने के लिए अनावर्ती खर्च के तौर पर एकमुश्त 3797 करोड़ रुपये खर्च होंगे।  इस अधिनियम के प्रावधानों पर अमल करने के लिए जितनी बड़ी धनराशि की आवश्यकता है, वह राज्य सरकारों के बस की बात नहीं है। इसलिए अधिनियम के क्रियान्वयन पर आने वाले अतिरिक्त खर्च को उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा ही वहन किये जाने की मांग की है|
(तथ्यात्मक समाचार-साभार दैनिक जागरण)

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9Comments
  1. जितना खर्चा और जितनी व्यवस्था उपलब्ध कराने की बात आपने की है- वह तो संभव नहीं लगती ।
    और हाँ, प्रशिक्षण तो माशाअल्लाह ही है डायट(DIET) में - घर से चिपका हुआ डायट भवन है मेरे जिले का - नजदीक से देख रहा हूँ ।

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  2. नहीं जी सरकार की तो मजबूरी है ...हां मूर्ति वूर्ति और पार्क वैगैरह की बात हो तो कहिए ..अभी ये फ़ंड तैयार हो जाएगा और मिल भी जाएगा .

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  3. जय हो। बहुत कठिन डगर है पनघट की।

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  4. इस माया से पूछो कि मुर्तियां बनबाने के लिये, जन्म दिन मनाने के लिये तो इस के पास पेसा है..... ओर अब स्कुल के नाम पर भी डकारना चाहती है.....

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  5. baat sirf compulsary shiksh ki nahi hain bachcho ko bhi is se faida hona chahiye. per raje sarkar ke sabhi adhikari sarv shiksha abhiyan se apna faida kar rahe hain.yeh bat sach hai ki lakho rupya a raha hai per lagta utna hi jitna adhikari lagana chahte hain.sarv shiksha abhiyan inki kamai ka aik or zariya bangaya hai..

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  6. आपकी बात से सहमत हूं---उल्टे प्रदेश की सरकार क्या करेगी भगवान मालिक है।
    पूनम

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  7. नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिये पैसा उअलब्ध होना तो शायद छोटी समस्या है, असली चीज है कि इम्प्लीमेण्टेशन मशीनरी क्या है? उस मशीनरी में सॉफ्ट-तकनीकी का क्या रोल है? बहुत लैटरल थिंकिंग की जरूरत है।

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  8. पत्थर के सनम मुहब्बत में भी नोट जमा करेंगे।

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