बिन गुरु ज्ञान कहाँ से लाऊं?

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शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल सुधार के
कार्यक्रम   में योग्य एवं गुणवत्तापूर्ण
शिक्षकों की कमी चिंता का विषय है।
लेकिन गुणवत्तापूर्ण  शिक्षक अभी भी
हमारे  सामने सबसे बड़ी चुनौती हैं।
निशुल्क  एवं अनिवार्य   शिक्षा प्रदान
करने के सपनेका सबसे बड़ा व्यवधान
यह  है कि  स्कूल जाने  से  वंचित
लगभग  एक करोड़   बच्चों के लिए
सरकार को पांच लाख शिक्षक चाहिए,
जो आसानी से मिलते नहीं दिख रहे
हैं। केवल प्राथमिकशिक्षा की बात करें
तो स्थिति और दुखदायी है।शिक्षामित्र,
गुरुजी  या संविदा   शिक्षकों की जैसी
नियुक्ति  होती है, और जिस तरह का
वेतन  दिया जाता है, उसमें  मजबूरी
में ही कोई बेरोजगार शिक्षक बनने का
विकल्प अपनाता है। जब तक मजबूरी
कानाम शिक्षक बनने का चलन खत्म
नहीं होगा,शिक्षकों की कमी की दिक्कत
का किनारा मिलना मुश्किल है।









च्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 ने उत्तर प्रदेश के लिए चुनौतियां भरा पहाड़ खड़ा कर दिया है। वर्तमान में एक लाख शिक्षकों की कमी झेल रहे बेसिक शिक्षा विभाग को इस अधिनियम पर अमल के लिए तकरीबन साढ़े चार लाख शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी। महकमा अब इस चिंता में दुबला हो रहा है कि प्रदेश में छह से 14 वर्ष तक के सभी  को शिक्षा रूपी   प्रसाद बांटने के लिए वह पर्याप्त संख्या में गुरुजनों की व्यवस्था करे तो कैसे?

इस अधिनियम के परिशिष्ट के अनुसार कक्षा एक से पांच तक में दाखिल 60 बच्चों पर दो, 61 से 90 बच्चों पर तीन, 91 से 120 बच्चों पर चार, 121 से 200 बच्चों पर पांच शिक्षक होने चाहिये, जिन स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक बच्चे हैं, वहां पांच शिक्षकों के अलावा एक प्रधानाध्यापक भी होना चाहिये। जिन स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या 200 से अधिक हो, वहां छात्र-शिक्षक अनुपात 40 से अधिक नहीं होना चाहिये। वहीं कक्षा छह से आठ तक के स्कूलों में विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन और भाषा का एक-एक शिक्षक अवश्य होना चाहिये। उच्च प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को कला, स्वास्थ्य शिक्षा और कार्य शिक्षा देने के लिए अंशकालिक शिक्षकों का भी प्रावधान किया गया है।


समय-समय पर इस बात पर विमर्श होता रहा है कि शिक्षकों की स्थिति इतनी शोचनीय क्यों है? जिस देश में गुरु को भगवान के समकक्ष माना गया है, वहां शिक्षक के पेशे में लोग क्यों नहींआना चाहते? प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक दयनीय क्यों और उच्च संस्थानों के शिक्षकों को अपने वेतनमान से शिकायत क्यों? शिक्षण के क्षेत्र में कदम-कदम पर ऐसे लोग क्यों खड़े हुए हैं, जिनसे पूरा ढांचा चरमराया हुआ है। फिल्म तारे जमींपर के बाद अभिनेता आमिर खान अधिकारपूर्वक शिक्षा व्यवस्था के बारे में बोलने लगे हैं। उन्होंने एक शिक्षक दिवस पर कहा कि शिक्षक के पेशे को धन से भी सम्मानजनक बनाने पर ही इसका महत्व बढ़ेगा। उनकी बात में काफी हद तक सच्चाई है। महाविद्यालयों व मेडीकल, इंजीनियरिंग या प्रबंधन के उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों का वेतनमान काफी अच्छा है, इसके अतिरिक्त अन्य सुविधाएं भी उन्हें मिलती हैं। लेकिन प्राथमिक विद्यालयों में यह स्थिति नहींहै। नियमित सरकारी शिक्षक हों तो भी बात अलग है। किंतु शिक्षा मित्र, गुरुजी या संविदा शिक्षकों की जैसी नियुक्ति होती है, और जिस तरह का वेतन दिया जाता है, उसमें मजबूरी में ही कोई बेरोजगार शिक्षक बनने का विकल्प अपनाता है। जब तक मजबूरी का नाम शिक्षक बनने का चलन खत्म नहीं होगा, शिक्षकों की कमी की दिक्कत का किनारा मिलना मुश्किल है।
सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय का आकलन है कि अधिनियम के प्रावधानों पर अमल करने के लिए तात्कालिक तौर पर सवा तीन लाख शिक्षकों की जरूरत होगी। वहीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए 65 हजार शिक्षकों की दरकार होगी। उच्च प्राथमिक स्कूलों में कला, स्वास्थ्य शिक्षा और कार्य शिक्षा सरीखे विषयों के लिए 45 हजार अंशकालिक शिक्षकों की आवश्यकता होगी। यदि राज्य सरकार के वर्तमान मानक को माना जाए तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा-6 पर अमल करने के लिए प्रदेश में तीन वर्ष के अंदर सात हजार नये विद्यालय स्थापित करने होंगे। इन स्कूलों के लिए 16 हजार और शिक्षकों की जरूरत होगी। शिक्षकों की जबर्दस्त कमी की वजह से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:59 है जबकि मानक के अनुसार यह 1:40 होना चाहिये। यह स्थिति तब है जबकि प्रदेश में बेसिक शिक्षा की धारा को प्रवाहमान बनाये रखने के लिए परिषदीय स्कूलों में तैनात ढाई लाख शिक्षकों के अलावा 1.86 लाख शिक्षा मित्रों की सेवाएं भी ली जा रही हैं।


बेसिक शिक्षा विभाग का एक और कड़वा सच यह है कि यहां हर साल 12 हजार से लेकर 14 हजार तक शिक्षक रिटायर होते हैं। इसके विपरीत प्रदेश के 70 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डायट) में प्रत्येक वर्ष सिर्फ 10650 शिक्षकों को ही विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। शिक्षकों को प्रशिक्षण देने वाले डायट टीचर्स ट्रेनर्स का अकाल झेल रहे हैं।

जागरण की खबर के अनुसार  बेसिक शिक्षा सचिव डा.अनूप चंद्र पांडेय कहते हैं कि 'शिक्षकों की भरपाई करने के लिए निदेशक बेसिक शिक्षा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति गठित कर दी गई है। कमेटी सुझाव देगी कि इस चुनौती से निपटने के लिए किस स्तर के शिक्षकों की जरूरत होगी। इस विकट परिस्थिति से पार पाने के लिए कमेटी की सिफारिशों पर उच्चादेश प्राप्त कर शिक्षक सेवा नियमावली में संशोधन भी किया जा सकता है। आवश्यक हुआ तो राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण परिषद (एनसीटीई) से शिक्षकों की अर्हता में छूट मांगी जा सकती है। डायट की प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाने और दूरस्थ शिक्षा के जरिये शिक्षकों को प्रशिक्षण देने जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। जरूरत हुई तो निजी क्षेत्र के डायट से विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण भी अनुमन्य किया जा सकता है। 
(तथ्यात्मक खबर - साभार दैनिक जागरण)

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18Comments
  1. विडम्बवा यह है कि शिक्षा के प्रति तरकार गम्भीर नही है!

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  2. थोड़ा फॉण्ट साईज बढ़ा लिजिये, प्लीज!!

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  3. बिलकुल तथ्यपरक आलेख । प्रविष्टियों का प्रस्तुतिकरण स्वच्छ व व्यवस्थित हो गया है बहुत ही । अच्छा लगा । कुछ नुस्खा हमें भी बताइये ।

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  4. सबसे बड़ी समस्या यही है हमारे यहाँ कि यहाँ फैसले बस कागजो पर होती है ।

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  5. कितने टीचर बेरोजगार है, अगर सब को नओकरी मिले गी तो कितने लाभ होगे सरकार को अनपढता खत्म होगी, बच्चो की फ़ीस से ही स्कुल का खर्च चल जायेगा,आने वाला भारत पढे लिखे लोगो के कारण ओर ज्यादा उन्न्ति करे गा, लेकिन हमारी सरकार ओर नेता ऎसा क्यो सोचे, उन्हे तो वोट चाहिये जो अनपढ जनता से ज्यादा मिलते है, ओर वो घर बेठे बेठे ही हम सब की भलाई के बारे सिर्र्फ़ सोचते है, ओर भलाई अपनी करते है

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  6. व्यवसायीकरण के युग में भावना का लुप्त होना सामान्य बात है . सम्मान की जगह अब रोजी रोटी का साधन है शिक्षा .

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  7. सबसे बड़ी समस्या यही है हमारे यहाँ कि यहाँ फैसले बस कागजो पर होती है

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  8. बिन गुरु ज्ञान कहाँ से लाऊं
    sahi kahaa aapne
    namaskar sir ji

    from
    sanjay

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  9. उपयोगी ब्लाग
    अच्छा लेख

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  10. यह मेरे लिये जानकारी है कि ट्रेनर्स और शिक्षकों की किल्लत है।

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  11. yeh bat sach hai ki har saal kei hazar teacher retired ho rahe hain or unki jagha ko bharna sarkar ke leye mushkil ho raha hai. agar sarkar ka yahi hal raha to yeh kahawat aam hone lage gi ki "bin guru giyan se laon".agar yahi hal raha to aik din aik teacher ko akele do,teen school sambhalne padh sakte hain.

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  12. शिक्षा के क्षेत्र में मेरी रुचि कुछ पार्ट टाइमर सी है। परन्तु रुचि है बहुत। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ किसी प्रकार की कंजूसी नहीं की जा सकती। संसार रुक सकता है किन्तु बढ़ता बच्चा नहीं। तो जितने अध्यापकों की आवश्यकता है वह पूरी की जानी चाहिए। यदि और प्रशिक्षण कॉलेज खोलने पड़ें तो वह भी किया जाना चाहिए। यहाँ कोई समझौता नहीं हो सकता।
    घुघूती बासूती

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  13. सरकार ने जो कायदे बनाये हैं वे उसी के फायदे के लिए ज्यादा हैं !

    शिक्षा के नाम पर करोंड़ों रुपये डकारने का इंतजाम पक्का है अफसर और बाबू का !

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  14. वैसे शिक्षा आजकल बहुत अच्छा धंधा है परंतु पता नहीं क्यों सरकार इसे उस तरह से मानकर चलाने को तैयार नहीं है, जो विशिष्ट वर्ग अगर अच्छे स्कूल मॆं पढ़ाना चाहता है तो उसे विशिष्ट स्कूल दो जम के फ़ीस लो और जरूरत मंद बच्चों को आगे बड़ाओ, तो शिक्षकों के तन्खवाह का बोझ भी सरकार के ऊपर से हट जायेगा। बताईयेगा सही है या नहीं...। वैसे भी निजी स्कूलों में शिक्षकों को कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती है, सब टाईम और प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट से चलता है।

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  15. @विवेक रस्तोगी जी
    हां! मानता हूँ कि सरकार ने शिक्षा को बहुत अच्छा धंधा बना डाला है .....पर उसकी मानसिकता में सारे स्कूल्स केवल सरकारी लोक लुभावन नीतियों के प्रचारक और वितरण केंद्र बना दिए गएँ हैं ......हर एक किलोमीटर में स्कूल भवन तो हैं लेकिन अध्यापक नहीं ?


    त्रासदी की असली वजहें यही हैं ..!!! आप हम सब तो इन्ही सरकारी स्कूल्स में पढ़े हुए हैं सरकार अधिकाँश अध्यापकों की क्रिएटिविटी को मार रही है .....बाहर का आ रहा पैसा भवन तो बढ़ा रहे हैं ....पर उसकी आत्मा खोखली हुई जा रही है !

    फिर चर्चा किसी और पोस्ट में ..!
    धन्यवाद!

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