प्रमाण महत्वपूर्ण है, लेकिन निगमनात्मक (निगमन-आधारित) प्रमाण के साथ बच्चों को यह भी जानना चाहिए कि चित्र व निर्मित प्रमाण कब और क्या क्या प्रदान कर सकते हैं। प्रमाण देना एक ऐसी प्रक्रिया है जो संशय (शंका) करने वाले विरोधी पक्ष को आश्वस्त (और शायद पस्त) करने के लिए परमावश्यक है; और शायद यही तार्किकता की पहली सीढी भी ? ( स्कूली गणित के माध्यम से प्रमाण को व्यवस्थित तर्क-वितर्क के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। )


पूर्व प्राथमिक स्तर पर सारा अधिगम (LEARNING) खेल के ज़रिए होता है, उपदेशात्मक संप्रेषण( LECTURE METHOD ) के ज़रिए नहीं। गिनती को क्रम में रटने की बजाय बच्चों को यह सीखने और समझने की ज़रूरत है कि छोटे समुच्चयों(SETS) के संदर्भ में नाम के खेल और संख्या में और गिनती एवं मात्रा में क्या जुड़ाव है।
बढ़िया ज्ञान मिला, गुरूदेव!
ReplyDeleteसुन्दर विवेचना रही!
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
गणित की शिक्षण-प्रक्रिया पर बेहतर आलेख ।
ReplyDeleteआभार ।
सही है..
ReplyDeletelogics ki logical vyakha...
ReplyDeleteHamesha ki tarah acchi lagi post !!
Dhanteras Dipawali aur Bahiyaa Dooj ki badhai.
शास्त्री जी और आप दोनो ही अध्ययन और अध्यापन पर बेहतरीन आलेख पोस्ट कर रहे हैं .. बडा सामयिक मुद्दा है ये !!
ReplyDelete..अपनी तो पाठशाला...प्राइमरी की पाठशाला.....
ReplyDeleteबढिया पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बहुत कुछ मिलता है आप की पाठ शाला मै , धन्यवद
ReplyDeleteआप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभकामनाये
इस ज्ञानवर्द्धके लिए हार्दिक आभार
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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बहुत बढिया जानकारी.
ReplyDeleteआपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
प्रमेय से भगवान् ने बचाया मुझे . दिया है करना है लिख कर सबसे साफ़ लिखते थे इति सिधम
ReplyDeleteपक्की बात कही है आपने ....
ReplyDeleteपर अपने हिंदी ब्लॉग जगत मैं कुतर्कों का ही बोल बाला है | ....
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |