जरूरत केवल इस विश्वास की है कि .......

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बहुत से बच्चे गणित से डरते हैं और इस विषय में असफलता से भयभीत रहते हैं। जबकि ज्यादातर यह भय स्वजनित ना होकर पराजनित होता है |परिणामतः  वे जल्दी ही गणित की गंभीर पढ़ाई से विमुख हो जाते हैं।यह परिस्थिति  केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चों के लिए भी कोई चुनौती नहीं पेश करती।

गणित शिक्षण की सभी समस्याएँ, अभ्यास व मूल्यांकन पद्धति यांत्रिक हैं और दुहरावग्रस्त हैं। इसमें गणना पर अत्यिधक ज़ोर दिया गया है। इसमें स्थानिक चिंतन जैसे गणितीय क्षेत्रों को उतना  स्थान नहीं दिया गया है, जितना दिया जा सकता था ।
चूँकि अध्यापक भी सामजिक प्राणी है सो उसी के चलते अध्यापकों में आत्मविश्वास, व तैयारी की कमी अधिकांशतः मुझे दृष्टिगत होती दिखाई पड़ती  है और उन्हें सम्बंधित आवश्यक मदद भी नहीं मिल पाती।
जरूरत  केवल इस विश्वास की है कि गणित एक `सटीक विज्ञान´ है। परिमाण और परिणाम  का अनुमान भी एक महत्त्वपूर्ण  कौशल है।
जब एक किसान किसी फसल का अनुमान लगाता है तो अनुमान लगाने के अनेक कौशलों  जैसे सन्निकटता  इत्यादि का उपयोग करता है  है। स्कूली गणित की इस तरह की उपयोगी बातें सिखाने और उनके परिष्करण में भी महत्वपूर्ण भूमिका की सम्भावना मुझे दीख पड़ती है है।
(क्रमशः जारी)

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7Comments
  1. व्‍यावहारिक रूप से गणित के ज्ञान दिए जाने के बारे में बहुत अच्‍छी श्रृंखला चल रही है .. इतने अच्‍छे विषय में सार्थक लेखन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !!

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  2. कभी कभी हम गणित के अध्यापन में इतना भावविभोर हो जाते हैं कि यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चे को कितना समझ में आ रहा है । अपने पुत्र को एक बार पढ़ाते समय एक प्रश्न को हल करने की चार विधियाँ बता दीं जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी । हमें गणित के अध्यापन में इससे बचना चाहिये ।

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  3. अरे,,,,जाने कबसे जैसे यही कहना चाहता था,,,,,सच्ची..

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  4. सही श्रृखंला!

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  5. गणित का भय मुझे समझ नहीं आया। बच्चे को लॉजिकल थिंकिंग सिखाई जाये तो समस्या ही नहीं।

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  6. "परिमाण और परिणाम का अनुमान भी एक महत्त्वपूर्ण कौशल है।"
    ji haan main bhi yahi maanta hoon...
    agar solve karne ki method sahi hai aur answer galat to poore poore marks milne chahiye.

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  7. प्रवीण जी गणित अधिकतर विद्दार्थियो के लिये एक कठिन विषय रहा है.. आपके लेखो में आपने सही इस संदर्भ में विचार वयक्त किये है..
    मुझे याद है 11वी कक्षा मे एक अध्यापक आये थे हमारे स्कूल मे.छिबर सर .. उनके पढाने का तरीका बहुत ही अनूठा था. जब वे किसी गणित की सम्स्या को हल करते थे तो कहते थे मुझे कुछ नही मालूम फिर समस्या को हिस्सो मे बदल देते थे और कहते थे ये मुझे मालूम है फिर उसे इसी तरह आगे बढाते थे और बडी आसानी से करने का तरीका सबकी समझ में आ जाता था.. अध्यापक कितना कुशल है(छात्रो की मानसिकता समझने में) या फिर कितना दिल्चस्पी ले रहा है छात्रो के साथ पर निर्भर करता है...शुभकामनाये.

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