.... तमाम कोशिशों के बावजूद हर बच्चा सीख क्यों नहीं रहा या शिक्षक सिखा क्यों नहीं पा रहे, क्यों बार-बार स्कूल नामक संस्था शर्मिदा होती है

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पिछली रिपोर्ट में उठाये गए सवालों के बाद झेंपते बच्चे, खिसियाते शिक्षक, शर्मिदा स्कूल पर अच्छे और सच्चे प्रश्न चिन्ह लगाती संजीव मिश्रा की आंकडों से भरी इस रिपोर्ट की दूसरी कड़ी में ......

पुखरायां के प्राइमरी स्कूल में खचाखच भरी पांचवीं कक्षा में बैठे राहुल को कक्षा दो की हिंदी की किताब देकर पढ़ने को कहा गया। उसने सिर झुका लिया, कुछ नहीं बोला। शिक्षक ने खिसियाते हुए कहा-'बुद्धू है यह, पढ़ना नहीं आता'। 'तो आप क्या करते हैं,' शिक्षक से यह सवाल पूछा गया तो वह भी झेंप गये। पर बड़ा सवाल यह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद हर बच्चा सीख क्यों नहीं रहा या शिक्षक सिखा क्यों नहीं पा रहे, क्यों बार-बार स्कूल नामक संस्था शर्मिदा होती है।

यह हाल महज पुखरायां के स्कूल का नहीं, पूरे सूबे का है। हर साल 'पास' होकर आठवीं तक पहुँचे बच्चों में से हर आठवां बच्चा 'कुछ भी' नहीं पढ़ पाता। वजह जानें तो शिक्षकों का बेहद अगंभीर तर्क है कि उन पर बच्चों को पास करने का दबाव रहता है। यदि बच्चे फेल हो गये तो वजीफा नहीं मिलेगा और फिर रिजल्ट खराब होने पर प्रतिकूल प्रविष्टि का भी खतरा है। ऐसे में हर बच्चा बस 'पास' होते-होते आठवीं तक तो पहुँच ही जाता है। जवाब सरकार के पास भी नहीं और विडंबना यह है कि कुछ न जानने वाले सिर झुकाये इन बच्चों से कभी उनकी मनोदशा के स्तर तक पहुंचकर वजह जानने की कोशिश होती नहीं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब इस दिशा में ही प्रयास हो रहे हैं, अभी तक स्कूल खोलने जरूरी थे, अब गुणवत्ता बढ़ायी जायेगी।आगे पढ़ें ................


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4Comments
  1. बात तो इस आजाद देश के नागरिकों को शर्मिंदा होनेवाली है। लेकिन हमें शर्म आती कहां है।
    देसी एडीटर
    खेती-बाड़ी

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  2. मार पीट के कबतक मुस्लमान बनायेंगे इच्छा भी तो कोई चीज है . संविधान संशोधन कर देना चाहिए कि नहीं पढोगे तो जेल भेज दिए जाओगे . हर तरह का चारा तो डाला जा रहा है . आज ही पढ़ा लोग नरेगा में काम करने को तैयार नहीं हैं अरे भाई ३ रुपये किलो अनाज बाँटोगे तो काम कौन करेगा , सारे देश को अलाल और गुलाम बना लो अपना राज चलता रहे

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