स्कूलों में बच्चे पिटे तो डीएम को भी दंड : फ़िर वही घटिया तरीका ..मूलभूत समस्या से पलायन

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स्कूलों में बच्चों की पिटाई या दूसरी शारीरिक सजा पर प्रिंसिपल या टीचर को जिम्मेदार बताकर जिलाधिकारियों के लिए पल्ला झाड़ना आसान नहीं होगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोगएनसीपीसीआर) ( की सख्ती का असर हुआ तो ऐसे मामलों को रोकने में विफल डीएम के भी खिलाफ कार्रवाई होगी। इतना ही नहीं, इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट के बाद आयोग राज्य सरकारों से भी जवाब तलब करेगा।

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शिक्षक की अपने बच्चों के बारे में क्या मान्यतायें और विश्वास है , यह सिखाने के तरीकों तथा अपने छात्रों से अपेक्षाओं को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं।बच्चों में जिज्ञासा पैदा कर हम उनका सीखना आसान कर सकते हैं। उनके अनुभव के आधार पर, रुचियों का ध्यान रखते हुए नवीन जानकारियों एवं अनुभवों को सहज रूप में जोड़ सकते हैं। उन्हें अभिव्यक्ति का पर्याप्त अवसर देकर उनकी कल्पनाशीलता एवं सृजनशीलता को सकारात्मक दिशा दे सकते हैं। तब हम पायेंगे कि हमारा काम आसान होता जा रहा है।


भारत
में, स्वातंत्र्योत्तर युग ने संवैधानिक उपलब्धियॉं, नीतियॉं, कार्यक्रम एवं विधान के माध्यम से बच्चों के प्रति सरकार के स्पष्ट रूख का अनुभव किया है। इस शताब्दी के अंतिम दशक में, स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा एवं संबंधित कार्यक्षेत्रों में आये तीव्र प्रोद्यौगिकी विकास ने बच्चों को नये अवसर प्रदान किये हैं।

भारत में बच्चों से संबंधित अनन्य समस्याओं पर प्राथमिकता से विचार करने के उद्देश्य से सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाऍं (एनजीओ) एवं अन्य सभी एकजुट हो गये हैं। उनमें समाविष्ट संबंधित मुद्दे हैं- बच्चे और काम, बालश्रम की समस्या से निपटना, लिंग भेद उन्मूलन, फुटपाथ पर रहनेवाले बच्चों का उत्थान, विकलांग बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करना एवं हर बच्चे को उसके आधारभूत अधिकार के रूप में शिक्षा प्रदान करना।

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6Comments
  1. आपसे सहमत हैं. इससे कुछ होने जाने वाला नहीं है.

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  2. आपने बिल्कुल सही कहा है.

    रामराम.

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  3. गुरु का डर नही होगा, मां बाप का डर नही होगा तो बच्चा किस ओर जायेगा...
    बहुत अच्छा लिखा आप ने

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  4. हो सकता है कि इस डर से ही कुछ सुधार आए।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  5. हा! हा!!
    वास्तविक समस्या का ब्यूरोक्रेटिक समाधान!

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  6. कुछ हल तो चाहिए ही।
    घुघूती बासूती

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