कान्वेंट स्कूलों के संस्कार क्या अब सच में बदलने वाले हैं?

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अंग्रेजियत के लिए जाने जाने वाले कान्वेंट स्कूलों के संस्कार क्या अब सच में बदलने वाले हैं। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की प्रार्थना सभा में गीता का सार गूंजने के साथ ही कई स्कूलों ने अपने कार्यक्रमों में भारतीय संस्कारों को अब अधिक महत्व देने की पहल की है। इसके तहत बच्चों का विद्यारंभ संस्कार भी किया जायेगा। इसकी शुरुआत इलाहाबाद के प्रतिष्ठित सेंट मेरीज स्कूल ने की है। यहां पहली बार कुछ दिनों पहले विद्यारंभ संस्कार आयोजित किया गया है। इलाहाबाद डायसिस के स्कूलों के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है।

गौरतलब है कि भारतीय परंपराओं पर आधारित सरस्वती विद्यालयों में (हिन्दी माध्यम)विद्यारंभ की समृद्ध सनातन परंपरा रही है। विद्यालयों में प्रवेश के प्रथम दिन छात्र-छात्राओं का पट्टी पूजन होता है। लेकिन अंग्रेजियत से लबरेज कान्वेंट स्कूलों में अभी विद्यारंभ की परंपरा नगण्य है। भारतीय संस्कृति के षोडससंस्कार में शामिल विद्यारंभ संस्कार के तहत बच्चों को पूरे विधिविधान के साथ अक्षराम्भ कराया जाता है। तिलक रोचना लगाकर शुभ मुहूर्त में उसे कुछ लिखने को प्रेरित किया जाता है।



उल्लेखनीय है कि मसीही समाज व डायसिस के स्कूलों में अनुशासन का तो बोलबाला रहता है लेकिन 'विद्यारंभ' जैसी सनातन परंपराएं बहुत कम या ना के बराबर है। ऐसे में सेंट मेरीज नर्सरी स्कूल का विद्यारंभ शुरू करने का फैसला चौंकाने वाला है। स्कूल की प्राचार्या सिस्टर फ्लोरेंस के अनुसार विद्यारंभ संस्कार संपन्न कराने के लिए इन्दौर से डायरेक्टर पुरोहित कुन्नत पुरोहित को बुलाया गया है। उन्होंने बताया कि पूर्व प्राविन्सियल सुपीरियर सिस्टर मैरिएट व प्राविन्सियल सुपीरियर सिस्टर सुमिता की प्रेरणा के चलते इस संस्कार को प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया है। सर्वधर्म प्रार्थना सभा व मंत्रोच्चार भी होगा। इसी क्रम में 16 अप्रैल को मेजा स्थित एसएमसी ब्रांच में भी विद्यारंभ संस्कार संपन्न होगा।

क्या है विद्यारंभ संस्कार ?

भारतीय संस्कार में विद्यारंभ की शास्त्रीय मान्यता है। इसके अन्तर्गत पूरे विधिविधान से बच्चे को अक्षरांभ कराया जाता है। आचार्यों के अनुसार शास्त्रोक्त मान्यताओं अनुसार बच्चे का 5वें वर्ष अक्षरांभ कराया जाता है। कुछ लोग तीन वर्ष में ही इस संस्कार को संपन्न कराते हैं। सोम, बुध, बृहस्पति व शुक्रवार या फिर किसी पूर्णातिथि और शुभ मुहूर्त में विद्यारंभ कराया जाता है। इसके तहत पट्टी पूजन व मंत्रोच्चार का विधान है। कुल देवता व भगवान गणेश व मां सरस्वती की आराधना की जाती है।

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22Comments
  1. Very creative news .This will guide all convent schools to follow Indian Culture.
    Thanks for this article.

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  2. Very creative news .This will guide all convent schools to follow Indian Culture.
    Thanks for this article.

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  3. किसी कॉन्वेंट स्कूल में विधिवत विद्यारंभ संस्कार का आयोजन होना अच्छी खबर है । धन्यवाद ।

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  4. विद्यारंभ संस्कार के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई.. आभार

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  5. agar aisa hai to achchee shuraat hai.

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  6. सच में? भरोसा नहीं हो रहा ! एक दुसरे की भावनाओं और मान्यताओं का सम्मान और बहुरंगी संस्कृति हो तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है.

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  7. अच्छी बात है कि अब इनको भारतीय संस्कृति रास आने लगी है. या यों कहें कि उन्हें मालूम हो चला है कि इनको अपनाए बिना उनका काम नहीं चलेगा.

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  8. इसकी क्या गारंटी है कि यह कोई मुखौटा नहीं है ?

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  9. साहेब, हमें विश्वास नहीं है इस बदलाव का।

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  10. देखते हैं कि इसका पालन होता भी है या नहीं

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    तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

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  11. यदि वाकई में भारतीयकरण है तो इसका स्वागत है. यदि महज एक मुखौटा है तो इसे उखाडने का इंतजाम करना होगा!! चिट्ठाजगत यह कार्य आसानी से कर सकता है.

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  12. क्या पता यह भी कोई छुपा हुआ एजेडां हो ?

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  13. जब काम किया जाए अच्‍छा
    और बतलाए कोई मास्‍टर
    वो भी जो हमारा अपना हो
    तो विश्‍वास जरूर करना चाहिए।

    सच सच है
    उसे गले से उतरना चाहिए
    गले से उतरे अथवा चढ़े उपर को
    दिमाग की ओर
    पर काम ऐसा होना चाहिए
    भरोसा कायम होना चाहिए।

    एक शुरूआत
    विजेता बनाती है
    मिसाल बन जाती है
    कार्य से बने मिसाल
    या कार्य की बतलाने से
    मिसाल तो बन गई
    इस साल।

    साल में दोहराई जाए
    ऐसे संस्‍कारों की कार
    प्रत्‍येक क्षेत्र में
    नेकनीयती से चलाई जाए
    ऐसी भावना सबके मन में आए।

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  14. भाई प्रवीण जी,
    आपने तो बहुत अच्छी सूचना दी है ...हमारी भारतीय संस्कृति की रक्षा की दिशा में
    यह एक शुभ सन्देश है.
    हेमंत कुमार

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  15. षोडससंस्कार भारतीयता से अधिक हिंदुत्व के परिचायक हैं | जो छात्र छात्राएं हिन्दू धर्म से हैं वे इन संस्कारों को समझ सकते हैं , पर चूँकि एक विद्यालय में सभी धर्मो को मानने वाले विद्यार्थी होते हैं किसी एक धर्म से पनपी परम्पराओं को ( भले ही अपने आप में वे महत्त्वपूर्ण हैं ) बढावा देना तार्किक होगा? पहले ही कान्वेंट विद्यालयों ने इसाइयत फैलाने के लिए शिक्षण संस्थानों का इस्तेमाल किया है जो कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में उचित नहीं जान पड़ता | आप को नहीं लगता कि संस्कारों के नाम पर शिक्षा को धर्म से न जोड़ा जाए .. कम से कम एक ही धर्म से तो नहीं | छात्र को ये समझाना बेहतर है कि धर्म क्या है और उसके मायने क्या हैं जीवन में , और फिर उसे चुनाव करने दें | आप के विचार जानना चाहूँगा इस पर |

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  16. शुरुआत तो अच्छी है. वैसे आपको बता दूं कि मिशन के स्कूलों में यह सब चीज़ें पहले से रही हैं. फ़र्क़ सिर्फ़ ये है कि पहले ईसाई पद्धति से रही हैं. अब अगर भारतीय या कहें सनातनी पद्धति से होगी तो यह सामुदायिक सौहार्द की एक नई मिसाल क़ायम होगी. हालांकि इसके पीछे कारण यह भी हो सकता है कि कई अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना तो चाहते हैं पर उन संस्कारों से बचाना चाहते हैं जिन्हें अंग्रेजियत कहा जाता है. वे नहीं चाहते कि उनके बच्चों के मन में अपने धर्म या संस्कृति के प्रति हीन भावना आए. इसलिए वे ऐसे स्कूलों में पढ़ाते हैं जिनकी यूएसपी है - अंग्रेजी शिक्षा-देसी संस्कार. तो ये उन दुकानों के ग्राहक झटकने की एक चाल भी हो सकती है!
    पर जो भी है, अच्छी बात है. एक शुरुआत तो हुई.

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  17. अगर ऐसा है, तो अच्‍छी बात है। इसकी सराहना की जानी चाहिए।

    और प्रवीण जी, कैसे हैं आप। शायद व्‍यस्‍तता ज्‍यादा है।

    -----------
    SBAI TSALIIM

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  18. मास्टर जी आपने बहुत अच्छी खबर सुनाई ! हालांकि इस पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन हो सकता है अभिभावकों का दबाव मिशनरी के स्कूलों को कार्य-प्रणाली बदलने पर मजबूर कर रहा हो ! बहरहाल एक अच्छा संकेत है जिसका हमें स्वागत करना चाहिए !

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  19. कई टिप्पणीकारों की तरह मुझे भी सन्देह है… इसमें "चालबाजी" की सम्भावना ज्यादा लगती है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में संघ/विहिप के बढ़ते प्रभाव के कारण "चर्च" अब अपने को अधि्क "उदारवादी" और "राष्ट्रवादी" साबित करने और जनसामान्य में अपनी पैठ बढ़ाने / स्वीकार्यता बढ़ाने के नये-नये जतन कर रहा है, और यह कदम उसी का एक हिस्सा हो सकता है…

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  20. अपनी पैठ बढ़ने के लिए भारतीय संस्कृति की ढाल का इस्तेमाल कर रहे हों तो भी प्रयास का स्वागत किया जाना चाहिए. मगर इसके पीछे विद्या मंदिरों के प्रति बढ़ते आकर्षण का भी कुछ तो महत्त्व है ही.

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  21. अगर कोई हमारी संस्कृति को बचने का प्रयास कर रहा तो स्वागत होना चाहिए ....यह एक अच्छी शुरुआत है...वर्ना आजकल के छात्र गुरुओं का आदर करना ही भूल गए हैं....!!

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