सड़ जाने से बेहतर है कि ..........

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कुछ बच्चे स्वयं किताबों की ओर आकिर्षत होते हैं तो कुछ बच्चों को किताब की अद्भुत, विलक्षण दुनिया से परिचित करवाने की ज़रूरत होती है पर दोनों ही स्थितियों में किसी को तो पहल करनी होती है : अध्यापक हों या अभिभावक या दोनों ही बच्चे किताबों के चित्रों, कहानियों में अपनी दुनिया ढूंढते हैं। शब्द, शब्दों की ध्वनियां उनके लिए खिलौनों की तरह होती हैं जिन्हें बार-बार दोहरा कर वे उनसे खेलते हैं उनकी कल्पना के परिन्दे अपने सुकुमार नन्हे पंख पसार कर अनगिनत उड़ानें लेते हैं इस उड़ान के लिए मजबूत तना बनता है, मुद्रित छपी सामग्री के समृद्ध माहौल से जो उन्हें बहुत छोटी अवस्था से ही मिल सके।

ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकाँश विद्यालयों में, अधिकाँश बच्चों के पास, यहां तक कि अध्यापकों के पास भी पढ़ने पढ़ाने की सामग्री के रूप में सिवाए पाठ्य पुस्तकों के और कुछ होता ही नहीं है । पाठ्य पुस्तकें बच्चों के लिए परीक्षा और प्रश्नों के उत्तर खोजने का साधन मात्र बन जाती हैं या यूं कह लें कि डर और बोझ का पर्याय, जहां पढने का आनंद भी डरा हुआ सा कहीं दुबक कर बैठा रहता है । पढ़ना सिखाने की परम्परागत विधियों में प्राय: अधिक ज़ोर रटने पर रहता है। समझ और रुचि के साथ पढ़ने के कौशल का समुचित विकास नहीं हो पाता । अक्षर और ध्वनियों को जोड़ कर शब्दों और वाक्यों को पढ़ना वास्तव में पढ़ना नहीं है। पढ़ने के दौरान अनेक मानसिक प्रक्रियाएं सक्रिय रहतीं हैं जैसे पूर्व अनुभवों से जोड़ना, अनुमान लगाना आदि। ऐसे में अगर ढेर सारा बाल साहित्य बच्चों तक पहुंचाया जा सके तो निश्चय ही हम पढ़ने के आनंद को बच्चों तक वापस ला सकेंगें । बच्चों में समझ कर पढ़नें के कौशल का विकास होगा तो उनके लिए अन्य विषय भी समझना आसान हो जाएगा ।

पढ़ने के कौशल से जुड़ी तमाम चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए NCERT द्वारा सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत एक रीडिंग सेल की स्थापना की गई है। सैल के कार्यों में एक महत्वपूर्ण कार्य है बच्चों तक स्तरीय पुस्तकें पहुंचाना ताकि वे स्वयं पढें, आनन्द के लिए पढ़ें और इस तरह पढ़ने की संस्कृति विकसित हो सके ।

किताबों की दुनिया की कुछ रोशनी बच्चों की चौखट तक लाने का कदम है विद्यालयों में रीडिंग कार्नर यानी अपने पुस्तक कोने की परिकल्पना जहां नन्हे पाठकों का पुस्तकों से परिचय हो सके । इस पुस्तक कोने में बच्चों के लिए अनेक चि़त्रात्मक पुस्तकें हों , तो भरपूर चित्रों से सजी कहानी की किताबें जिनमें बहुत कम शब्द हों। कुछ ऐसी किताबें भी हैं जिन्हें अध्यापक पढ़ कर बच्चों को सुना सकते हैं । ये किताबें पढ़ने के आनंद के साथ बच्चों का भाषायी कौशल भी सुदृढ़ कर सकेंगी।

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इसके लिए ज़मीन होगी - आज़ादी और आनंद,- ऐसा पुस्तक कोना जहां किताबें अलमारियों, बक्सों की कैद से बाहर हों, सुलभ हों, बच्चे उन्हें बेरोकटोक छू सकें, पढ़ सकें, साथियों से उन पर बात कर सकें ; खासकर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के परिवेश में जहाँ रखे रखे किताबों के सड़ जाने से बेहतर है की वे पढ़ते पढ़ते फट जायें ।

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  1. आपने एक अलहदा शुरुआत की है...मैं अक्सर सोचता हूँ कि हमने अपने बच्चों के साहित्य और स्वस्थ मनोरंजन के लिए आज के समय के लिहाज से ज्यादा कुछ नहीं किया है.....!! शुभकामनायें...आपको.

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