...............उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है।

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पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है।
जयशंकर प्रसाद

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Today | 14, May 2025