इतने गंभीर मत बनो !

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एक शिक्षक का कार्य केवल व्यर्थ की बातें सिखाना ही नहीं है - भूगोल और इतिहास और हर तरह की बकवास उसका मूल कार्य छात्रों में एक बेहतर चेतना का सृजन करना है , एक उच्च कोटि की चेतना का यही तुम्हारा प्रेम हो , यही तुम्हारी करुणा और यही वह कसौटी हो जिस पर तुम कार्य को सही या ग़लत होना तौल सको ......गंभीर मत मत बनो यह मत सोचो की तुम एक शिक्षक हो तो तुम एक गंभीर कार्य कर रहे हो जीवन को खेल पूर्ण की द्रष्टि से देखो .........यह सचमुच आनंद पूर्ण है निर्णय मत करो - हर कोई अपना कार्य कर रहा है यदि तुम किसी किसी से परेशान हो तो यह तुम्हारी समस्या है , उसकी नहीं पहले अपने आपको ठीक करो

उपरोक्त विचार आचार्य रजनीश के हैं ....... एक शिक्षक के बारे में जाहिर है हर विचार का स्वागत किया जाना चाहिए , और उसमे से परीक्षण के पश्चात् प्राप्त गूढ़ तत्वों को ग्रहण किया जाना चाहिए काफ़ी विचार करने के बाद आगे कुछ बिन्दु लिखने का प्रयास किया है आज की बदली परिस्थितयों में वास्तविक शिक्षक को केन्द्र में बने रहने के लिए बदलाव करना ही पड़ेगा अपने अन्दर

  • आधुनिक शिक्षक को बहुत विनम्र होना ही पड़ेगा ......शिक्षक केन्द्र था कल तक । विद्यार्थी उसकी परिधि पर था । अब हालत बिल्कुल बदल गई है । विद्यार्थी केन्द्र पर होगा और शिक्षक परिधि पर होगा ।
  • भविष्य के शिक्षक को आदर के ख्याल को छोड़कर प्रेम व स्नेह के ख्याल को अपनाना पड़ेगा ।
  • नए शिक्षक का कम अब ज्यादा से ज्यादा बड़े भाई का होगा , पिता का नहीं । नया शिक्षक ठीक अर्थों में मित्र होगा , गुरु नहीं।
  • नए शिक्षक को बहुत सपेक्षवादी होना पड़ेगा ।
  • आज के शिक्षक के सामने सवाल होगा की वह वह विद्यार्थियों के सामने सिर्फ़ पांडित्य न दे ।
  • उसे ध्यान में रखना पड़ेगा उसके शिक्षक होने का भविष्य का जो फंक्सन है .......वह है अज्ञात में प्रवेश करवाने के क्षमता पैदा करवाना ।
  • नया शिक्षक नई पीढियों को जीवन की खोज की , जिज्ञासा की ,यात्राओं पर निकलने का मध्यम बनाना चाहिए , अतीत के उत्तर हाथ में दे देने वाला नहीं।
  • शिक्षक का मौलिक और गहरे से गहरा अर्थ - वह जो भीतर है वह बाहर लाना है ।

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