पेश है गाँधी जी के शैक्षिक विचारों की श्रंखला में उनके शैक्षिक प्रयोगों व अनुपयोगों की अगली किस्त ..........
गाँधी जी के शिक्षा के सिद्धांत और ढंग भी मौलिक होते थे। दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को अंग्रेजी सिखाने के लिए तैयार हो गए। उनको तीन छात्र मिले– एक मु सलमान हज्जाम , एक कारकून और एक हिंदू दुकानदार। वे अंग्रेजी सीखने को बहुत उत्सुक थे, किंतु अपना व्यापार छोड़कर नहीं आ पाते थे। गाँधी प्रतिदिन चार मील पैदल जाकर खुद उन्हें पढ़ाया करते थे। बिना फीस लिए आठ महीने तक मास्टरी करके उन्होंने अपने छात्रों को काम–चलाऊ अंग्रेजी सिखा दी थी।
गाँधी चलती–फिरती कक्षा भी लगाया करते थे। अपने छोटे–छोटे लड़कों को घर पढ़ाने के लिए गाँधी समय नहीं निकाल पाते थे, इसलिए दफ्तर जाते समय बच्चे अप ने बापू के साथ हो लेते थे। वे प्रतिदिन पाँच मील पैदल चलते–चलते कहानी के रूप में गुजराती साहित्य, कविता और अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त किया करते थे। बच्चों को स्कूल भेजने के सवाल पर झंझट उठ खड़ा हुआ था। अंग्रेजों के स्कूल में भारतीय बच्चों को दाखिला नहीं मिलता था। गाँधी को विशेष छूट मिल सकती थी। किंतु जो छूट उनके सब भारतीय भाइयों को न मिले, उन्होंने ऐसी सुविधा नहीं ली। गाँधी अपने बच्चों को अंग्रेजी औ र अंग्रेजियत नहीं सिखाना चाहते थे। कुछ दिनों के लिए एक अंग्रेज महिला ने उनके बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई और बाकी विषय उन्होंने खुद पढ़ाए। अपने घर में रहने वाले अंग्रेज मित्रों तथा आने–जाने वालों के संपर्क में उनके बच्चों ने अंग्रेजी बोलने का अच्छा अभ्यास कर लिया था।
फिनिक्स में गाँधी ने आश्रमवासियों के बच्चों के लिए एक पाठशाला खोली। गाँधी स्वयं उसके प्रधान शिक्षक थे और अन्य साथी सहशिक्षक। गाँधी जो काम स्वयं नहीं कर पाते थे उसे दूसरों को करने का उपदेश नहीं देते थे। उनकी मान्यता थी कि जो शिक्षक स्वयं भीरू और अनियमित होगा वह विद्यार्थियों को साहस और नियम पालन नहीं सिखा पाएगा। शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के समक्ष आदर्श रूप में होना चाहिए। उन्हें जब भी समय मिलता, वह बहुत कुछ पढ़ डालते और कोई नई बात सीख लेते थे। पैंसठ साल की आयु में जेल में रहते हुए उन्होंने पहली बार आकाश में ग्रह–नक्षत्रों को पहचानना सीखा था। आश्रमवासी विद्यार्थी सभी धर्मावलम्बी थे। शिक्षकों में भी अंग्रेज , जर्मन और भारतीय थे। शिक्षकगण आश्रम में खेती बाड़ी आदि करने में इतने व्यस्त रहते थे कि कभी–कभी सीधे खेत से लौटकर पैरों में कीचड़ लपेटे कक्षा में चले आते। कभी–कभी छोटे बच्चे को गोद में लेकर पढ़ाया करते थे। फिनिक्स आश्रम में चाय, कोको औ र काफी पीने की मनाही थी, क्योंकि मालिक इनकी खेती गुलाम मजदूरों से कराते थे। स्वास्थ्य और सबलता के लिए टेनिस आदि खेलों के बजाए उन्होंने दैनिक शारीरिक श्रम करने का नियम बनाया था।
गाँधी का विश्वास था कि बचपन में दस जने मिलकर यदि खेल के बहाने काम करने का अभ्यास कर लें तो आगे चलकर खेल खेल में वे बड़ा काम कर सकते हैं।
( क्रमशः जारी )
गाँधी जी के शिक्षा के सिद्धांत और ढंग भी मौलिक होते थे। दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को अंग्रेजी सिखाने के लिए तैयार हो गए। उनको तीन छात्र मिले– एक मु सलमान हज्जाम , एक कारकून और एक हिंदू दुकानदार। वे अंग्रेजी सीखने को बहुत उत्सुक थे, किंतु अपना व्यापार छोड़कर नहीं आ पाते थे। गाँधी प्रतिदिन चार मील पैदल जाकर खुद उन्हें पढ़ाया करते थे। बिना फीस लिए आठ महीने तक मास्टरी करके उन्होंने अपने छात्रों को काम–चलाऊ अंग्रेजी सिखा दी थी।
गाँधी चलती–फिरती कक्षा भी लगाया करते थे। अपने छोटे–छोटे लड़कों को घर पढ़ाने के लिए गाँधी समय नहीं निकाल पाते थे, इसलिए दफ्तर जाते समय बच्चे अप ने बापू के साथ हो लेते थे। वे प्रतिदिन पाँच मील पैदल चलते–चलते कहानी के रूप में गुजराती साहित्य, कविता और अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त किया करते थे। बच्चों को स्कूल भेजने के सवाल पर झंझट उठ खड़ा हुआ था। अंग्रेजों के स्कूल में भारतीय बच्चों को दाखिला नहीं मिलता था। गाँधी को विशेष छूट मिल सकती थी। किंतु जो छूट उनके सब भारतीय भाइयों को न मिले, उन्होंने ऐसी सुविधा नहीं ली। गाँधी अपने बच्चों को अंग्रेजी औ र अंग्रेजियत नहीं सिखाना चाहते थे। कुछ दिनों के लिए एक अंग्रेज महिला ने उनके बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई और बाकी विषय उन्होंने खुद पढ़ाए। अपने घर में रहने वाले अंग्रेज मित्रों तथा आने–जाने वालों के संपर्क में उनके बच्चों ने अंग्रेजी बोलने का अच्छा अभ्यास कर लिया था।
फिनिक्स में गाँधी ने आश्रमवासियों के बच्चों के लिए एक पाठशाला खोली। गाँधी स्वयं उसके प्रधान शिक्षक थे और अन्य साथी सहशिक्षक। गाँधी जो काम स्वयं नहीं कर पाते थे उसे दूसरों को करने का उपदेश नहीं देते थे। उनकी मान्यता थी कि जो शिक्षक स्वयं भीरू और अनियमित होगा वह विद्यार्थियों को साहस और नियम पालन नहीं सिखा पाएगा। शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के समक्ष आदर्श रूप में होना चाहिए। उन्हें जब भी समय मिलता, वह बहुत कुछ पढ़ डालते और कोई नई बात सीख लेते थे। पैंसठ साल की आयु में जेल में रहते हुए उन्होंने पहली बार आकाश में ग्रह–नक्षत्रों को पहचानना सीखा था। आश्रमवासी विद्यार्थी सभी धर्मावलम्बी थे। शिक्षकों में भी अंग्रेज , जर्मन और भारतीय थे। शिक्षकगण आश्रम में खेती बाड़ी आदि करने में इतने व्यस्त रहते थे कि कभी–कभी सीधे खेत से लौटकर पैरों में कीचड़ लपेटे कक्षा में चले आते। कभी–कभी छोटे बच्चे को गोद में लेकर पढ़ाया करते थे। फिनिक्स आश्रम में चाय, कोको औ र काफी पीने की मनाही थी, क्योंकि मालिक इनकी खेती गुलाम मजदूरों से कराते थे। स्वास्थ्य और सबलता के लिए टेनिस आदि खेलों के बजाए उन्होंने दैनिक शारीरिक श्रम करने का नियम बनाया था।
गाँधी का विश्वास था कि बचपन में दस जने मिलकर यदि खेल के बहाने काम करने का अभ्यास कर लें तो आगे चलकर खेल खेल में वे बड़ा काम कर सकते हैं।
( क्रमशः जारी )