बच्चे
देश का भविष्य हैं
वे साईकिल दौड़ाते
अखबार बांट रहे हैं।
वे घरों में झाडू लगा रहे हैं
कूड़ा कचरा उठा रहे हैं
कपड़े धो रहे हैं
बच्चों के शोरगुल में
देश का भविष्य चहकता है
वे मैले फटे थैले में
पालिश की डिब्बी बु्रश लिए
चौड़ी सड़कों के फुटपाथों पर
भटक रहे हैं।
वे टेम्पुओं के पायदानों पर खड़े
चिल्ला चिल्ला कर
सवारियां बुला रहे हैं।
बच्चों की हँसी में
देश का भविष्य हँसता है।
वे ढाबों में लपक लपक
रोटी तरकारी परोस रहे हैं
दूसरी कविता
होटल के पिछवाड़े
वे बर्तन साफ कर रहे हैं
क्या बच्चों के आँसुओं में
देश का भविष्य रोता है।
स्कूल के बंद दरवाजे को
हसरत भरी निगाहों से देख
आँख झुका लेते हैं।
बच्चे !
खिलौने भरी दुकानों में
भीतर झाँक ठिठक जाते हैं
बच्चे !
बिस्कुट टाफियाँ भरे मर्तवानों के पास
पल भर रूककर
खामोश आगे बढ़ जाते हैं।
द्वारा रचित - जुगमंदिर तायल
तीसरी कविता
बच्चे जानते हैं
घर का अर्थ
बच्चे जानते हैं
हाथी के दाँत
दिखाने के और
खाने के और होते हैं,
हम बहुत कुछ
भूलते जा रहे हैं
चौथी कविता
बच्चे दिखाते हैं हमें
चिडि़याघर का रास्ता
बच्चे ले जाते हैं
हमें हमारे बचपन में
बच्चे जोड़ते हैं हमें
घर से परिवार से
दुनिया से प्रकृति से
बच्चे ले जाते हैं
हमें अपने साथ स्वप्नलोक में
हम बहुत कुछ
भूलते जा रहे हैं
बच्चे जानते हैं
प्रेम का अर्थ
बच्चे सिखाते हैं
हमें प्रेम करना।
पाचवीं कविता
आया एक हवा का झोंका
बैठे बैठे बन्नू चौंका
उसने उसको बढ़के रोका
रुकता भला कहां से झोंका
उसने उसके बाल उड़ाये
जितने थे कागज छितराये
अब बन्नू को आया होश