जीवन को संवारना सीख लिया है इन्होने !

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‘‘शिक्षा सिर्फ़ अक्षर ज्ञान के लिए नहीं है बल्कि यह सशक्तीकरण का वह हथियार है जो हमें समाज में बेहतर जीवन जीने के योग्य बनाती है‘‘ इस बात का उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं दूर दराज के अंचलों से आयी वे बालिकाएं जिन्हे परिस्थितियों ने शिक्षा से वंचित कर दिया था, किसी को गरीबी के कारण, किसी को छोटे भाई बहन की देखभाल के कारण, किसी को घरेलू जिम्मेदारी तो कोई बालिका शिक्षा की उपेक्षा के कारण सिर्फ़ शिक्षा से महरूम हो गई बल्कि एक अनपढ़ तथा कमजोर जीवन जीने को मजबूर हो गई और उसी को अपनी नियति समझ बैठी। उन्हें इस बात का कतई अन्देशा नहीं था कि वे कभी भी जीवन में शिक्षा पाने का अवसर पायेंगी। उनकी आँखों की ज्योति बुझी हुई थी। उनका चेहरा मुरझाया हुआ था। उनको सपने देखने के अवसर नहीं मिले। हंसी की खिलखिलाहट को कभी महसूस नहीं किया। बस अपने को भाग्य के सहारे छोड़ कर दिन काट रही थीं।
जी हाँ, यह कोई कहानी नहीं है। यह हकीकत है। उन बालिकाओं की जो उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े जनपदों के दूर दराज के अंचलों से आई हैं तथा सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत अपने जनपद में संचालित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय योजना के अन्तर्गत संचालित आवासीय विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर
रही हैं। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005–06 में लागू की गई। विद्यालय में उस जनपद की महिला साक्षरता की दृष्टि से पिछड़े विकासखण्ड़ों की ऐसी बालिकाओं को नामांकित करने का लक्ष्य रखा गया जो अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग, अल्प संख्यक एवं सामान्य जाति की गरीबी की रेखा के नीचे की बालिकाएं जो कभी भी विद्यालय नहीं गयीं अथवा जिन्होंने शालात्याग दिया हो। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का संचालन शुरूआती दौर में चुनौतीपूर्ण था। जो माता–पिता अपनी बालिका को अपने ही गांव की पाठशाला में नहीं भेज रहे थे वे उसे आवासीय विद्यालय में ब्लाक मुख्यालय पर कैसे भेजेंगे ? यह एक बड़ा प्रश्न था। फिर उन्हें चिन्हित करना उन तक पहुंचना और उनके माता–पिता को राजी करना भी आसान न था। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए मानक के अनुसार बालिकाओं को चिन्हित करने का काम शुरू किया गया। जन सम्पर्क बैठकें, रैली, वार्ता, सहमति पत्र भरवाना, अभिभावक मोटिवेशन कैम्प, लम्बी प्रक्रिया की जद्दोजहद के बाद विद्यालय संचालिए हुए।
इन विद्यालयों ने बालिकाओं को घर की दहलीज लाँघकर शिक्षा की रोशनी से अपने जीवन को संवारने का अवसर दिया। यकीन नहीं होता ये वही लड़कियाँ हैं जो सात–आठ माह पूर्व बुझी–बुझी सी, शरमाई हुई, संकोच करती हुई विद्यालय में आयी थीं। आज उनका उत्साह देखते ही बनता है।आज वे प्रधानमन्त्री जी से वार्ता करती हैं, दिल्ली भ्रमण कर रही हैं, हॉकी, कबड्डी जैसे खेल में अव्वल हैं। कम्प्यूटर चलाती हैं। पुस्तकालय का संचालन कर रही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी आँखों में ढेरों सपने तैर रहे हैं। वे बाहें फैलाकर आसमान छूने को तत्पर दिखाई देती हैं। वे ठहाके लगाती हैं। उन्होंने अपने जीवन का प्रबन्धन करना सीख लिया है। उनके पूरे व्यक्तित्व में आये परिवर्तन को देखकर उनके माता–पिता भी हतप्रभ हैं। उन्होंने अपने जीवन को संवारना सीख लिया है। अब वे समस्या का समाधान करती हैं, चित्रकारी करती हैं, समूहों का नेतृत्व करती हैं, निर्णय लेती हैं।

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2Comments
  1. उन छात्राओं के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ...अच्छी जानकारी दी...इस तरह की जानकारी अक्सर कम ही देखने में आती है कि फलां जगह यह कार्यक्रम हुआ या फलां जगह यह...क्योंकि विवादों की खबरें उन्हे ढक लेती हैं शायद।
    अच्छी पोस्ट।

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  2. अच्छा आलेख!!जानकर अच्छा लगा.

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