हर साल बीस हजार छात्र-छात्रायें कलम कागज से कर लेते तौबा

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(फतेहपुर)
दो दशक के साक्षरता अभियान का सच यह है कि एक भी गांव व मजरे को फक्र के साथ प्रशासन पूर्ण साक्षर कहने की स्थिति में नहीं है। चवालीस फीसदी से अधिक की निरक्षरता का कलंक मिट नहीं पा रहा है। 2001के बाद से अभियान की सुस्ती ने हजारों नव साक्षरों को भी अंगूठाछाप की फौज के साथ खड़ा कर दिया है। इससे भी अधिक चौकाने वाली बात यह है कि नई पीढ़ी यानि छ: से बारह वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों का प्रतिशत भी पूर्ण साक्षरता की ओर नहीं बढ़ रहा है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद पढ़ाई पूरी हो पाये इसकी नौबत ही नहीं आती इसके पहले ही तीन से पांच फीसदी के बीच केबच्चे कागज, कलम से तौबा कर लेते हैं। एक आंकड़े के अनुसार हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के पहले ही हर साल बीस हजार बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं।

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