गुजरात में अब होगी स-पुस्तक परीक्षा

1

छात्रों के मन से परीक्षा का निकालने के लिए गुजरात सरकार ने क्रांतिकारी योजना के तहत एक ऐसी प्रणाली निकाली है जिसके तहत छात्र अब परीक्षा के समय अपनी पाठ्यपुस्तक देख सकेंगे इससे छात्रों को अपना पाठ रटना नहीं पडेगा..............
ज्यादा जानने के लिए यंहा चटकाएं ।

हालाकि यह व्यवस्था मुझे याद पड़ता है कि उत्तर-प्रदेश में आज से पहले करीब १८-२० वर्ष पहले घरेलू परीक्षाओं में प्रायोगिक रूप से लागू हुई थी । एक या दो वर्ष के अन्दर यह व्यवस्था वापस ले लीगयी थी ।
यकीनन हर व्यवस्था कि तरह इस व्यवस्था से कुछ फायदे के साथ नुकसान भी संभावित हो सकते हैं।

* दोस्ताना व तनावमुक्त माहौल,।

* परीक्षा का भय नहीं ।

* कोई फेल नहीं होगा।

* कमजोर बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा

* रचनात्मक प्रवृत्ति के बच्चे बेहतर परिणाम दे सकेंगे

* बच्चे खेल और दूसरी रचनात्मक गतिविधियों के लिए समय निकाल सकेंगे

* मनोवैज्ञानिक व शारीरिक विकृतियां में कमी आएगी

* बच्चे नक़ल के लिए तरीके नहीं प्रयोग करेंगे ।

* यह सकारात्मक प्रयास है। इस नए प्रयोग के अच्छे परिणाम आ सकते हैं। ऐसे प्रयोग विदेशों में होते रहते हैं। वहां अच्छे परिणाम मिले हैं।

* यह व्यवस्था व्यावहारिक नहीं है। इससे बच्चों की अधिगम क्षमता का आंकलन नहीं हो पाएगा। हालांकि इसके पीछे सोच यही है कि बच्चों के मन से परीक्षा का भय दूर हो।

* अगर पढ़ाई नहीं की है तो बच्चे किताबों से भी नहीं लिख सकते। परीक्षा की पुरानी पद्धति ही अच्छी है। गहन अध्ययन करना हमारी शिक्षा पद्धति की विशेषता है। यह व्यवस्था प्रभावी नहीं हो सकती है ।

* इससे बच्चे नकल करना भी सीखेंगे। अभी यह सिद्धांत लोगों को स्पष्ट नहीं है। पहले बच्चों को इसकी मूल भावना भी समझानी होगी।


Post a Comment

1Comments
  1. वर्तमान व्यवस्था रट्टू तोता बनाती है, तनाव में भूलना ज्यादा होता है अतः अच्छा विद्यार्थी भी फेल हो सकता है.
    मंथन से नए तरीके विकसीत होते है, प्रणालियों से चिपके रहने से नहीं.

    ReplyDelete
Post a Comment