दरअसल, गुरु का अर्थ ही होता है-बडा, यानी जो हर मायने में बडा है। और इसे और ज्यादा गहरे अर्थो में कहें, तो गुरु का अर्थ है, जो हमें गुर या कोई गुण सिखाते हैं। आपने महान कवि और चिंतक कबीर का नाम तो जरूर सुना होगा। उन्होंने अपनी कविता में कई जगह लिखा है कि गुरु कुम्हार है और शिष्य घडा। दरअसल, जिस तरह गुरु अनगढ मिट्टी को तराशकर उसे सुंदर घडे की शक्ल दे देता है, उसी तरह गुरु भी अपने शिष्य को हर तरह का ज्ञान देकर उसे विद्वान और सम्मानीय बनाता है। हां, ऐसा करते हुए गुरु अपने शिष्यों के साथ कभी-कभी कडाई से भी पेश आ सकता है, लेकिन जैसे एक कुम्हार घडा बनाते समय मिट्टी को कडे हाथों से गूंथना जरूरी समझता है, ठीक वैसे ही गुरु को भी ऐसा करना पडता है। वैसे, यदि आपने किसी कुम्हार को घडा बनाते समय ध्यान से देखा होगा, तो यह जरूर गौर किया होगा कि वह बाहर से उसे थपथपाता जरूर है, लेकिन भीतर से उसे बहुत प्यार से सहारा भी देता है।
यह कहना है अनीता वर्मा जी का जो की राज्य स्तर पर अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित है ।
पूरा लेख पढने के लिए यंहां चटकाएं ।
(जागरण याहू इंडिया से साभार)
क्या आप जानते हैं कि गुरु शब्द का क्या अर्थ होता है?
Sunday, September 07, 20081 minute read
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आभार...अच्छा आलेख!!
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
बहुत अच्छी बात लिखी है आपने, पर आज कल ऐसे गुरुओं का अकाल पड़ गया है. कहीं नजर ही नहीं आते. न गुरु ही रहे और न ही शिष्य. 'गुरु गोबिंद दोनों खड़े ......', केवल किताबों की बात ही रह गई है.
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