मिड -डे मील बना मास्टरों के जी का जंजाल

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केन्द्र सरकार के सर्वशिक्षा अभियान में मिड -डे मील योजना का जोर शोर से प्रचार हो रहा है / वास्तव में प्रचार ही हो रहा है / गुणवत्ता और मानक के साथ -साथ सफाई , स्वछत्ता का ध्यान बिल्कुल भी नहीं दिया जा रहा है / खिलाना चाहती है जो खिलाना चाहती है ससे ज्यादा प्रचार करना चाहती है , ऐसा ज्यादा समझ में आती है /
मिड डे मील में उत्तर -प्रदेश के ,के विद्यालयों में यह जिम्मेदारी ग्राम प्रधान के ऊपर डाली गई है , जो की कोटेदार से मिड डे माल का गल्ला उठाने के बाद सरकार द्वारा प्राप्त कन्वर्जन कोस्ट का उपभोग करते हुए , प्राथमिक शिक्षा में गरमा गरम मध्यान्ह भोजन (हाट कुकेड मिड -डे मील) उपलब्ध करवाता है / इसी में सबसे बड़ा रोड़ा है/ सबसे पहले समस्या आती है कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गए खाद्यान्न की गुणवत्ता की ,तो यह 50% से ज्यादा ख़राब ही होती है / उसके बाद बारी आती है खाना बनवाने की जिम्मेदारी उठाये ग्राम- प्रधान के नीयत की /
यंही पर सबसे ज्यादा दिक्कत आती है , ज्यादातर तो खाना बनवाने से ही इंकार ,जाहिर है - दबंगई ही सबसे बड़ा आत्मविश्वास है जो की हमारे जन प्रतिनिधियों में अधिकांशतः पाया जाता है / यदि बनवाना भी तो गुणवत्ता पूर्ण बनवाना / हमारे बच्चे उस खाने को खाते ही नहीं , यदि दबाव डाल कर दे दिया जाता है तो वह उसे लेकर फेंक देते हैं / ऐसी खबरें अक्सर हमारे प्रिंट मीडिया में अवश्य दिखती हैं / इन सब के बावजूद इन सारी परिस्थितियों में शिक्षक के सामने निम्न समस्याएं आती हैं-
  1. खाना बनवाना ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी है , कन्वर्जन कास्ट का उपभोग जब वही करता है तो अध्यापक के माथे उसका हिसाब ब्यौरा तैयार करने की जिम्मेदारी क्यों ?
  2. जाहिर है जो खर्च कर रहा है ,उसी को खर्च का रजिस्टर भी तैयार करना चाहिए / बताता चलूँ की , यह जिम्मेदारी अध्याक के माथे पर ही है .जो बगैर किसी खर्च के सबूत के रजिस्टर तैयार कर रहा है / और यह सब सरकार के नियमान्तर्गत ही है /
  3. सबसे बड़ी बात उस उद्देश्य की प्रतिबद्धता की पूर्ति की है , जिस को लेकर इस योजना को सुप्रीम कोर्ट द्वारा संचालित करने का आदेश दिया गया था /
  4. बच्चे को अच्छा और गुणवत्तायुक्त भोजन तो दूर , अपने आंखों के सामने उनको वह भोजन जिसको हम अपने बच्चों को नहीं खिला सकते हैं ,उसे कुछ बच्चों को खाते देखना सबसे बड़ी शिक्षक की समस्या है/
  5. इस योजना के क्रियान्वन से उपजी अन्य समस्यायों में सबसे बड़ी समस्या है विद्यालयों के दैनिक कामकाज में इसकी घुसपैठ , शिक्षण प्रक्रिया में बाधा .......आदि /
  6. खाना बनवाना ऐसा काम है , जो कभी समय पर तैयार हो जाए -ऐसा माह में - बार ही होता है/ ज्यादातर तो यह नियत समय से 15 मिनट से लेकर 2-2 घंटे देर तक तैयार होता है /जाहिर है की इसका दुस्प्रभाव पूरी स्कूली व्यवस्था पर पड़ता है /
  7. फिर सरकार के डंडे का भय - यह भय भी आश्चर्य जनक रूप से केवल अध्यापकों पर चलता दिखता है /
  8. जो जन प्रतिनिधि बच्चों के साथ छल करते हुए उनके पेट के हिस्से में कमीशन खाते है, सरकार तो उनसे आज तक वह खाद्यान तक नही वसूल पाई है , जो कि वह फर्जी रूप से डकार जाते हैं और ही उपभोग कि गयी कन्वर्जन कास्ट /
  9. अपने जनपद में दावे से मैं कह सकता हूँ कि आज तक ऐसे ग्राम प्रधानो कि संख्या 2-3 से ज्यादा नही हैं ,जिन पर कोई सरकारी छिट -पुट कार्यवाही कि गयी हो/
  10. पर यही दावा अध्यापकों पर मैं करुँ तो यह आंकडा कम से कम 120- 150 अध्यापकों पर जा कर ठहरता है /
  11. जाहिर है सरकार कि नीयत में कंहीं कहीं कुछ खोट अवश्य है , नहीं तो जिस पर केवल उपस्थित संख्या प्रमाणित करने कि जिम्मेदारी है उसे बलि का बकरा बनाने के बजाय सरकार खाना बनवाने कि जिम्मेदारी लिए व्यक्ति पर कार्यवाही करती /
  12. चलते -चलते ,बतादूँ कि नीचे वह उदाहरण है जिनके आधार पर अध्यापकों पर कार्यवाही कि गयी है /
............... उपस्थिति में 2 से लेकर 5 तक कि संख्या में अन्तर होने पर , खाने कि गुणवत्ता ख़राब होने पर खाना बनने पर , खाना मीनू के अनुसार बनने पर , हिसाब में 10-20रुपये का जोड़ ग़लत होने पर , मिड - डे मील समिति कि नियमित बैठक होने पर ........ आदि

यह सारे उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि - सरकार केवल कमजोर कड़ी पकड़ना चाहती हैं, जाहिर है कि जन-प्रतिनिधि पर कार्यवाही करने कि हिम्मत आज सरकारों के पास है ही कंहा ?
वास्तव में मेरे हिसाब से तो सरकार इस योजना का क्रियान्वन केवल वाल-पेंटिंग करवा कर ही करना चाहती है , हर जिले में मिड-डे मील समन्वयक नियुक्त करके , टोल फ्री फ़ोन पर प्राप्त शिकायत पर कार्यवाही करने का वादा करके ही सरकार समझती है कि उसके कर्तव्य कि पूर्ति हो गयी है /

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3Comments
  1. सरकार केवल कमजोर कड़ी पकड़ना चाहती हैं, ......और यही होता आया है,आपने सही पक्ष दिखाया है.
    धन्यवाद बाल कविता पसंद करने के लिए और बच्चों के बीच ले जाने के लिए .....

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  2. प्रवीण जी,

    आपका कहना बिल्कुल ठीक है. सरकार केवल कमजोर कड़ी ही पकड़ती है. ग्राम प्रधान सरकार के लिए (या फिर राजनैतिक पार्टियों के लिए) वोट इकठ्ठा कर सकता है. प्राईमरी स्कूल का मास्टर ऐसा नहीं कर सकता. लिहाजा 'सरकार' स्कूल के मास्टर के बारे में नहीं सोचेगी. वोट के अलावा प्रधान जी 'सरकार' से मिलने वाले पैसे में में जो भी धांधली करेंगे उसका एक हिस्सा तो सरकार के पास भेजेंगे ही. ऐसे में आपकी चिंता जायज है.

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  3. such schemes only teach people how to become legally corrupt. do primary teacher have courage to teach honesty to children. remember you have power to shape the future.

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