कुछ ऐसे संदेश भी............

5

अक्सर हम अपनी कक्षाओं मे "रटने का अभ्यास" करते और कराते हैं । जबकि अभ्यास मे सृजनशीलता और नवीनता की संभावनाएं रहती हैं। इसमे किसी क्रिया को समझ और तर्क के साथ करने की गुंजाईश होती है।अभ्यास मे बच्चे की स्वयं-सक्रियता बच्चे को अधिक बेहतर तरीके से अधिगम प्राप्त करने का मौका देती है । इसके विपरीत रटना एक मशीनी क्रिया है। इसमे किसी बात को बगैर सोचे -समझे बार -बार दोहराना होता है। इसमे मस्तिष्क कम सक्रिय होता है। रटने की क्रिया मे बच्चा स्वयं पर केंद्रित नहीं कर पाता है। इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि बच्चे का पढने की क्रिया से मन हट जाता है।
सीखने -सिखाने की हमारी योजनाओं मे बच्चों के लिए ढेरों संदेश होते हैं । बच्चों पर इनके असर के बारे मे हम लगभग जानते हैं , पर कुछ ऐसे संदेश भी हैं ,जो हमारे स्कूल के माहौल,अध्यापक के व्यवहार , बोल-चाल , चाल - ढाल , और हाव-भाव , मे मौजूद तो होते हैं पर अध्यापक को उनका आभास नहीं हो पाता हैंहमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हम उन संदेशों को समझ कर उसी के अनुसार अपनी योजनाये बना कर क्रियान्वित करने का प्रयास करें।

Post a Comment

5Comments
  1. aapne bilkul sahi likha hai.me sahamat hu.

    ReplyDelete
  2. सहमत हूँ आपकी बात से.

    ReplyDelete
  3. आज सुबह ही हिन्दुस्तान का सम्पादकीय  पन्ना खोला तो रवीश कुमार के नियमित साप्ताहिक कलामब्लॉग-वार्ता  मे इस ब्लॉग के बारे मे पढ कर बड़ा ही सुखद आश्चर्य  हुआ । आगे आपस सम्पर्क रखकर जरूर शिक्षा व्यवस्था पर आपसे चर्चा करूँगा । उत्तर-प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा मे शिक्षक को सरकारी नीतियों का प्रचारक बना दिया गया है , आपकी इस बात से में पूरी तरह से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  4. आज सुबह ही हिन्दुस्तान का सम्पादकीय  पन्ना खोला तो रवीश कुमार के नियमित साप्ताहिक कलामब्लॉग-वार्ता  मे इस ब्लॉग के बारे मे पढ कर बड़ा ही सुखद आश्चर्य  हुआ । आगे आपस सम्पर्क रखकर जरूर शिक्षा व्यवस्था पर आपसे चर्चा करूँगा । उत्तर-प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा मे शिक्षक को सरकारी नीतियों का प्रचारक बना दिया गया है , आपकी इस बात से में पूरी तरह से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  5. परंतु कुछ चीजों को रटना भी जरूरी है - जैसे कि पहाड़ा. बचपन में रटा हुआ अभी भी जोड़घटाना गुणाभाग में काम आता है.सूत्रों को तो रटना ही पड़ता है.

    हाँ, पूरा पाठ या सबक रटवाया जाए तो बात दूसरी है.

    ReplyDelete
Post a Comment